Posts

Showing posts from February, 2020

कहानी बलवंतनगर की

Image
जब पढने बैठा झाँसी के बारे में तो परत दर परत खुलती चली गयी। झाँसी सिर्फ रानी झाँसी तक सीमित नहीं था, इसकी तारें ओरछा, जहाँ मै पिताजी के साथ लगभग हर हफ्ते तो जाया ही करता था, से जुड़े हुए थे। और फिर ओरछा यानी बुंदेला राजवंश , यानी चंदेलो और परिहारों की कहानी और एक कहानी वो भी कि बुंदेलखंड नाम कैसे पड़ा ।  लेकिन वो कहानी फिर किसी और दिन, फिलहाल वादे के मुताबिक पहले चलते हैं उस सफ़र पर जहाँ मालूम हुआ था कि   झाँसी , झाँसी कैसे बना? झाँसी शहर , पहुंज और बेतवा नदी के बीच स्थित वीरता , साहस और आत्म सम्मान का प्रतीक है जो कि किसी ज़माने में चंदेला शासकों का गढ़ था। झाँसी जिसे प्राचीन काल में बलवंत नगर के नाम से जाना जाता था , कहा जाता है कि छेदी राष्ट्र , जेजक भुकिट , झझोती क्षेत्र में से एक था। लेकिन ११वीं सदी आते आते झाँसी का महत्व कम हो गया था। १७वीं शताब्दी में ओरछा के राजा बीर सिंह देव प्रथम के शासनकाल में फिर से झाँसी की शोहरत बढ़ी जिनके मुगल सम्राट जहांगीर के साथ अच्छे संबंध थे। पांच साल के निर्माण काल (१६१३-१६१८) में राजा बीर सिंह देव ने झांसी किले का निर्माण करवाया

क्यूं लिखता हूं मैं

Image
"स्काइप काम कर रहा है आपका ?" "जी" "सिग्नल्स आपके तो ठीक आ रहे हैं" मेरे लैपटॉप में झांकते झांकते गिरने ही वाली थी कि संभाल लिया था उसने आपने आप को। गोल मटोल सी, घुंघराले बाल वाली कोई फिर फिरंगन थी ये तो मैंने देख लिया था। सन् २००८, महीना अक्टूबर, सुबह के करीब ११ बजे, तारीख याद नहीं बैंकॉक के स्वर्णभूमि हवाईअड्डे के गेट नंबर १८ के सामने बैठे बैठे करीब २ घंटे हो चुके थे और अगली फ्लाइट में अभी लगभग २ घंटे थे बोर्डिंग को। मेरी अगली फ्लाइट कंबोडिया के लिए थी जहां मेरी तैनाती हाल में ही हुई थी। तैनाती क्या हुई थी , मुझे दूसरा जीवनदान मिला था। आगे के सारे रास्ते बंद हो चुकने पर, अगले महीने की गाड़ी की किस्त चुकाने के बारे में सोचते सोचते जब पसीने की बूंद ने सिगरेट की उस आखरी टुकड़े पर घिर कर अपने को धुएं में बदलने की तैयारी की थी तब वो कॉल आई थी। "काम करोगे फिर से?" अंधे ने झपट कर आंखें पकड़ ली थी। जाना मलेशिया था, जाना पड़ा इंडोनेशिया और क्यूं पहुंच गए कंबोडिया की कहानी फिर कभी सुनाऊंगा , आज तो ये बताने बैठ गया हूं कि लिखना कैसे शुर

ॐ नम: शिवाय

Image
किं तस्य बहुभिर्मन्त्रै: किं तीर्थै: किं तपोऽध्वरै:। यस्यो नम: शिवायेति मन्त्रो हृदयगोचर: । - (स्कन्दपुराण) (जि सके हृदय में ‘ॐ नम: शिवाय’ मन्त्र निवास करता है , उसके लिए बहुत-से मन्त्र , तीर्थ , तप और यज्ञों की क्या आवश्यकता है! )