कहानी बलवंतनगर की
जब पढने बैठा झाँसी के बारे में तो परत दर परत खुलती चली गयी। झाँसी सिर्फ रानी झाँसी तक सीमित नहीं था, इसकी तारें ओरछा, जहाँ मै पिताजी के साथ लगभग हर हफ्ते तो जाया ही करता था, से जुड़े हुए थे। और फिर ओरछा यानी बुंदेला राजवंश , यानी चंदेलो और परिहारों की कहानी और एक कहानी वो भी कि बुंदेलखंड नाम कैसे पड़ा । लेकिन वो कहानी फिर किसी और दिन, फिलहाल वादे के मुताबिक पहले चलते हैं उस सफ़र पर जहाँ मालूम हुआ था कि झाँसी , झाँसी कैसे बना? झाँसी शहर , पहुंज और बेतवा नदी के बीच स्थित वीरता , साहस और आत्म सम्मान का प्रतीक है जो कि किसी ज़माने में चंदेला शासकों का गढ़ था। झाँसी जिसे प्राचीन काल में बलवंत नगर के नाम से जाना जाता था , कहा जाता है कि छेदी राष्ट्र , जेजक भुकिट , झझोती क्षेत्र में से एक था। लेकिन ११वीं सदी आते आते झाँसी का महत्व कम हो गया था। १७वीं शताब्दी में ओरछा के राजा बीर सिंह देव प्रथम के शासनकाल में फिर से झाँसी की शोहरत बढ़ी जिनके मुगल सम्राट जहांगीर के साथ अच्छे संबंध थे। पांच साल के निर्माण काल (१६१३-१६१८) में राजा बीर सिंह देव ने झांसी किले का निर्माण करवाया