इस कहानी में बचपन के किस्से है, प्रेम है, गिरना है, उठना है और फिर गिर कर, उठकर संभलकर, खड़े होने की कहानी है। - सरोज सिंह ( एक समीक्षा)
" मैं मुन्ना हूँ " - नायक के मानसिक विदलन और सृजनात्मक विकास व उपलब्धियों की कथा है। समकालीन सनसनियों में से एक से शुरू हुई यह कथा आपको एक बालक , एक किशोर , एक युवक के उस आदिम अरण्य में ले जाती है जहाँ उसके भोगे गए यथार्थ का मनोविज्ञान है। इस उपन्यास में सबसे ज्वलंत मुद्दा जो उठाया गया है वह है - “ बाल यौन शोषण ” नायक ‘ मुन्ना ’ इस हादसे का दंश कई बार झेलता है कभी अपनों के द्वारा तो कभी गैरों के मार्फ़त। हमारे समाज की मानसिक विकृतियों के मनोविज्ञान की बारीकियों को से चित्रित करता सहज भाषा में लिखा गया यह उपन्यास बाध्यकारी विखंडनो से ग्रस्त समय में हर सजग पाठक के लिए एक अनिवार्य पाठ है , मेरा ऐसा भी मानना है। उपन्यास के नायक मुन्ना की कहानी शुरू होती है बचपन में , जहाँ वो यौन शोषण की त्रासदी झेलता है। शुरू में उसका अबोध मन समझ नहीं पाता और कई बार विरोध करना चाहते हुए भी कर नहीं पाता अंतत : उसका विरोध फ