इस कहानी में बचपन के किस्से है, प्रेम है, गिरना है, उठना है और फिर गिर कर, उठकर संभलकर, खड़े होने की कहानी है। - सरोज सिंह ( एक समीक्षा)
"मैं मुन्ना हूँ" -नायक के मानसिक विदलन और सृजनात्मक विकास व उपलब्धियों की कथा है। समकालीन सनसनियों में से एक से शुरू हुई यह कथा आपको एक बालक, एक किशोर, एक युवक के उस आदिम अरण्य में ले जाती है जहाँ उसके भोगे गए यथार्थ का मनोविज्ञान है। इस उपन्यास में सबसे ज्वलंत मुद्दा जो उठाया गया है वह है- “बाल यौन शोषण”
नायक ‘मुन्ना’ इस हादसे का दंश कई बार झेलता है कभी अपनों के द्वारा तो कभी गैरों के मार्फ़त। हमारे समाज की मानसिक विकृतियों के मनोविज्ञान की बारीकियों को से चित्रित करता सहज भाषा में लिखा गया यह उपन्यास बाध्यकारी विखंडनो से ग्रस्त समय में हर सजग पाठक के लिए एक अनिवार्य पाठ है, मेरा ऐसा भी मानना है।
उपन्यास के नायक मुन्ना की कहानी शुरू होती है बचपन में, जहाँ वो यौन शोषण की त्रासदी झेलता है। शुरू में उसका अबोध मन समझ नहीं पाता और कई बार विरोध करना चाहते हुए भी कर नहीं पाता अंतत: उसका विरोध फूट पड़ता है। वह अपना दुःख सिर्फ़ किन्नू से साझा करता है जो उसका काल्पनिक साथी है। मुन्ना का कृष्ण प्रेम व उसकी आस्था उसे अपने भैया व केशव से मिलवाती है जिस से वो अपने दुःख-तकलीफ साझा करता है और वे उसके मार्गदर्शक बनते हैं।
अपने दोस्तों ठाकुर, शेखू के साथ स्कूल और कॉलेज के दिनों के हलके-फुल्के पलों को साथ लेकर आगे बढ़ते हुए, स्कूल के दिनों से चलता हुए वो सफर कॉलेज तक जा पहुँचता है जहाँ मनिबाला, चारुलता, टिंकी उसके निकट आती हैं, वो उनके प्रति आकर्षित भी होता है और फिर वो मिलता है मोरपंखी से, जिसे वो चाहता था और फिर प्रेम कर बैठता है और तमाम मुश्किलों के बावजूद शादी भी उसी से करता है।
और फिर जैसा कि अमूमन होता है गृहस्थ जीवन में जब प्रेम का ईंधन कम होने लगता है तब गृहस्थी की खुशहाली बुझने लगती है सो वही मुन्ना की ज़िन्दगी में भी होता है। उसकी ज़िन्दगी में मानसी आती है जिसे वो दीवानगी की हद तक चाहने लगता है मगर नियति कुछ और ही खेल रच रही होती है। मानसी भी उसका साथ छोड़ देती है। मुन्ना वापस मोरपंखी के पास जाने की कोशिश करता है किन्तु मोरपंखी की बेरुखी उसे और दूर ले जाती है। मानसी के अलगाव से टूट चुके मुन्ना के जीवन को, अचानक से आयी हुई नैना सहारा देती है।
भीतर से टूट चुका मुन्ना के लिए मानसी को भुला नहीं पाना सबसे बड़ी कमजोरी बन जाती है। अंतत: आध्यात्मिकता को अपना संबल बनाते उए स्वयं को फिर मजबूत करता है।
इस कहानी में यौन शोषण की त्रासदी है, बचपन के किस्से है, प्रेम है, जवानी की शरारतें हैं, गिरना है, उठना है और फिर गिर कर, उठकर संभलकर, खड़े होने की कहानी है।
मुझे पूर्ण रूप से आशा है कि एक प्रेम कहानी लिखने के बाद, अगले पायदान पर चलते हुए एक सामाजिक विषय को छू लेने के पश्चात अपनी अगली पुस्तक में मनीष एक बार फिर हम सभी को चौंका देंगे।
आशा ही नहीं पूरा विश्वास है कि मनीष की इस रचना को भी आप सिर माथे पर बैठायेंगे।
लिंक ये रहा
https://notionpress.com/read/main-munna-hun
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