यह कथा मुन्ना के एक पुत्र के रूप में, यारों के यार के रूप में, प्रेमी और पति के रूप में, और एक पिता के रूप में हुए अनुभवों की श्रृंखला है।
लेखक परिचय
‘मैं मुन्ना हूं’ मनीष जी का
दूसरा उपन्यास है, उनके
प्रथम उपन्यास का नाम ‘रूही – एक पहेली’ है। श्री मनीष श्रीवास्तव की रचनाएँ ऑप
इंडिया, मंडली, स्वराज्य, इण्डिक टूडे जैसे मंचों पर
प्रकाशित होती रही हैं। लेखक मुख्य रूप से भावनात्मक कहानियाँ और मार्मिक संस्मरण
लिखते हैं। उनकी रचनाएँ आम बोलचाल की भाषा में होती हैं और उनमें बुंदेलखंड की
आंचलिक शब्दावली का भी पुट होता है। लेखक का मानना है कि उनका लेखन स्वयं में उनकी
तलाश की यात्रा है और इसीलिए हिन्दी पढ़ने में रुचि रखने वाले ट्वीटर और फेसबुक
जैसे सोशल माध्यमों पर सक्रिय पाठक श्री मनीष श्रीवास्तव के यात्रा वृत्तांतों के
लिए सदैव प्रतीक्षारत रहते हैं।
पुस्तक परिचय
‘मैं मुन्ना हूँ’ में ‘बाल यौन
शोषण’ का संवेदनशील मुद्दा उठाया गया है! बाल यौन शोषण जैसे गंभीर विषय पर हिंदी
भाषा में लिखा गया संभवतः यह प्रथम उपन्यास है। विषय गंभीर होते हुए भी सरल भाषा
शैली और खट्टे-मीठे किस्सों का संतुलन होने के कारण उपन्यास पठनीय है और पाठकों को
अंत तक बांधे रखता है।
पृष्ठ
संख्या: 356
मूल्य: 370
प्रकाशक:
Notion
press
लिंक: https://notionpress.com/read/main-munna-hun
समीक्षा
मुन्ना
के बचपन में घटित हुई कुछ भयावह घटनाओं के साथ उपन्यास की शुरुआत होती है लेकिन
ऐसे कठिन समय में भी लेखक किन्नू के रुप में मुन्ना को एक साथी प्रदान कर देते हैं
जो मुन्ना को अकेला नहीं पड़ने देता। किशोरावस्था और युवावस्था में अपने बाल्यकाल
को भुलाने का प्रयास करता मुन्ना, अपने जिगरी यार-दोस्तों के साथ आवारागर्दी और शरारतें करता
और संबंधों के ताने-बाने बुनता मुन्ना परिपक्व हो जाता है लेकिन उसका बचपन बार-बार
उसके घाव कुरेदता रहता है।
यह कथा
मुन्ना के एक पुत्र के रूप में, यारों के यार के रूप में, प्रेमी और पति के रूप में, और एक पिता के रूप में हुए
अनुभवों की श्रृंखला है। इस उपन्यास में दुःख, यातना, आनंद, क्रोध, घृणा, प्रेम, आस्था जैसी अनेक मानवीय भावनाओं और
संवेदनाओं को चित्रित किया गया है।
“ऐसे लोग कभी नायक नहीं बन पाते
और अवसाद में घिरे खुद के ही प्रति नकारात्मकता से घिरे रहते हैं। इनमें
आत्मसम्मान की कमी होती है और दूसरों के प्रति उनके रिश्तों का तरीका भी अजीब हो
जाता है। वे आसानी से किसी रिश्तों पर विश्वास नहीं कर पाते और तो और लम्बे चलने
वाले रिश्ते भी सामाजिक रूप से नहीं चल पाते।”
बाल्यकाल में
घटित हुई यौन शोषण की घटनाएं एक व्यक्ति के जीवन को कैसे प्रभावित करतीं हैं इसका
वर्णन करते हुए उपन्यास में लेखक कहते हैं
कथा
प्रवाह में अनेक प्रसंग ऐसे भी आते हैं जब दुविधा और कठिनाईयों से त्रस्त कृष्ण
भक्त मुन्ना की रक्षा एवं मार्गदर्शन किन्नू, केशव और अमोहा माँ करते हैं। एक लेखक
की काबिलियत यह नहीं है की वो काल्पनिक कहानियां गढ़ दे लेखन सफल तब माने जाते है
जब वो अपनी आँखों को समाज का आइना बना दें। एक लेखक के रूप में मनीष जी समाज में
व्याप्त बाल यौन शोषण जैसे गंभीर मुद्दे को बड़े ही सहज और सरल प्रवाह में लिखते
हैं।
कथा में
नायक कई बार गिरता है, उठता है, उलझता है, संभलता है, रुकता है और फिर रुक कर चलता
है।कोविड१९ जैसी वैश्विक समस्याओं की वजह से मुन्ना के प्रकाशन में हुई देरी के
कारण अधीर पाठकों की प्रतीक्षा का अब अन्त हुआ है। उपन्यास का समापन एक अद्भुत
प्रसंग के साथ होता है जिसे अनुभव करने के लिए पाठकों को यह उपन्यास स्वयं ही
पढ़ना होगा।
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