बहुत शक्ति ली मुन्ना ने पढ़वाने में


 


#मैं_मुन्ना_हूँ - कई, कई सालों बाद कोई किताब 24 घंटे से कम समय में ख़त्म करी है।

पैर से क़ालीन के नीचे करा जाने वाला बाल यौन शोषण जैसे विषय पर कोई हिंदी कहानी लिखी गई, ये उसे एक बार में पढ़ जाने के लिए काफ़ी था। फिर मुन्ना की कहानी, उसके जीवन और चरित्र के उतार-चढ़ाव पढ़ते पढ़ते ये विषय भी वैसे ही कहानी के अवचेतन में चला गया जैसे हर मुन्ना के ये वीभत्स अनुभव उसके अवचेतन में चले जाते हैं। कभी कभी अचानक से पाठक की ओर देखकर जो कोई बात कही गई तो पता नहीं चला की मुन्ना (protagonist) कह रहा है, लेखक कह रहा है या पाठक ख़ुद से कह रहा है। 


कोई पात्र, कोई प्रसंग ऐसा नहीं जिसे कोई अपने जीवन के यथार्थ से जोड़ ना पाए। जब लगा कि ये तो अब केवल मुन्ना की उलझी प्रेम कहानी सी हो गयी तभी कभी भैया, कभी केशव और कभी अमोहा अम्मा आ जाते थे और अवचेतन से सब फिर चेतन में - सारे मुन्ना, ऐसे ही भँवर में डूबते-उबरते रहते हैं। 


एक मुख्य कहानी आँखों के आगे चल रही थी, उसके पात्र जो कह-कर रहे थे, उनको जैसे “अच्छा हुआ” या “बुरा हुआ” कह कर एक संवाद चल रहा था। किताब पढ़ना आमतौर पर बड़ा सुकून देता है क्योंकि हम लिखी बात को पढ़कर एक कल्पना करते हैं और कहानी के साथ साथ आगे चलते रहते हैं, कुछ करना नहीं होता। पर ‘मैं मुन्ना हूँ’ ऐसी नहीं है- इसमें पढ़ने वाले का दिल और दिमाग़ लगातार अपने जीवन को भी टटोलता रहता है, बहुत शक्ति ली मुन्ना ने पढ़वाने में। 


कुछ सत्य घटनाएँ, कुछ लेखक के अनुभव, कुछ कल्पना- इन सब को कड़ियों में इतनी ख़ूबसूरती से पिरोया कि क्या सच है और क्या कहानी को सक्षम बनाने के लिए करी गयी कल्पना, ये शायद एक तकनीकी कहानी विश्लेषक भी ना ढूँढ पाए। बहुत बधाई आपको  @shrimaan

जी, इतने गंभीर विषय को इतनी सुंदर कहानी में पिरो कर हम सब के साथ साझा करने के लिये। आशा है और कुछ विश्वास भी कि आगे आने वाली कहानियों की कड़ियाँ आपस में और मज़बूती से जुड़ी होंगी। और उतनी ही दृढ़ता से जुड़ी रहेंगी आपके और आपके पाठकों की कड़ियाँ! Child Abuse या बाल यौन शोषण समाज को धीरे धीरे गला रहा है, उसे पतन की ओर ले जा रहा है। टूटे व्यक्तित्व बढ़ते जा रहे हैं, कुत्सित मानसिकताओं को बढ़ावा मिल रहा है। 


निश्छल प्रेम और विश्वास अब तो पिक्चर में देखने को भी नहीं मिल रहे। केशव तो भवन के बाहर खड़े हैं पर द्रौपदी पुकार नहीं रही उन्हें। हर मुन्ना #मैं_मुन्ना_हूँ के मुन्ना जैसा व्यक्तित्व नहीं होता, वो किन्नू को दोस्त नहीं बनाता। अँधेरों में डूबता चला जाता है और हमारे सामने आता है आज जैसा, तेज़ी से सड़ता समाज, टूटा-फूटा सा समाज। millennials आपकी और हमारी जगह ले लेंगे, बहुत जल्दी। ये नयी पीढ़ी अगर इतनी आहत, घायल, बिखरी हुई बड़ी होगी तो सोचिये कैसा होगा आने वाला समाज। मुझे बहुत सी उम्मीद है अपनी बरसों पुरानी संस्कृति से, उसके परिवार केंद्रित त्रि-स्वास्थ्य को ठीक रखने के मूलभूत धर्म से। 


मानसिक व वैचारिक स्वास्थ्य को अच्छा रखना, शारीरिक स्वास्थ्य को अच्छा रखने से कहीं अधिक कठिन है। हम सब को मिलकर इसे अच्छा रखना है। स्वास्थ्य के भागीदार बनिये, कुंठा-घुटन के नहीं। अपने किसी अपने, दोस्त बंधु के साथ हर परिस्थिति में सिर्फ़ साथ मत खड़े रहिए, वो नीचे जा रहा हो तो उसे ऊपर खींचिए, ग़लत कर रहा हो तो उसे थप्पड़ मार के रोकिए, अगर किसी बच्चे को गिद्ध बन कर निगलने वाला हो तो उसे expose करिये। आपके मित्र को, बंधु को दानव बनने से, राक्षस बनने से रोकिये। अपना जीवन बेहतर बनाना है तो किसी दूसरे के जीवन को ख़राब होने से बचाना ज़रूरी है, नहीं तो वो आपके जीवन को भी बिगाड़ सकता है। #stopchildabuse

 

 

समीक्षक – अंशु दुबे

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